Tuesday, December 15, 2009

शहीद भगत सिंह

शहीद का अर्थ है जो देश के लिए अपनी जान दे दे। भारत देश पर अंग्रेज हुकूमत कर रहे थे। भारत माता अंग्रेजों की गुलाम थीं। भारत माता को स्वतंत्र करने के लिए भगत सिंह लड़े और इस लड़ाई में अपनी जान दे दी। इसीलिए हम उन्हें शहीद भगत सिंह कहते हैं।


अब हम पढ़ेंगे कि बचपन से ही उनके मन में अंग्रेजों से लड़ने की बात कैसे घर कर गई।,



पंजाब के लायलपुर के एक गाँव बंगा में, एक शिशु का जन्म हुआ। दादी ने बड़े प्यार से उस बच्चे का नाम भगत सिंह रखा। सब भगत सिंह को खूब प्यार करते। घर में दादा-दादी, माता-पिता, बडे़ भाई-बहन और चाचा-चाची साथ रहते। सबके बीच खेलकर भगत सिंह बड़ा होने लगा।

भगत सिंह के जन्म के समय भारत में अंग्रेजों का शासन था। भगत सिंह के दादा, पिता और चाचा सब देश को आजाद कराने की कोशिश में जी-जान से जुटे हुए थे। घर के लोगों की बातचीत का भगत सिंह के मन पर गहरा असर पड़ा। वह बचपन से ही भारत की आजादी के सपने देखने लगा। सॅंझले चाचा की मृत्यु पर उसकी चाची रो रही थीं। चाची को तसल्ली देते हुए बालक भगत सिंह ने कहा-

”चाची जी, रोइए मत। जब मैं बड़ा हो जाऊॅंगा, अंग्रेजों को भारत से भगा दॅंूगा और चाचा जी को वापस लाऊॅंगा।“ चाची ने भगत को सीने से चिपका लिया।

पढ़ने लायक उम्र होने पर भगत सिंह को गाँव के प्राइमरी स्कूल में भर्ती करा दिया गया। वे पढ़ाई में बहुत तेज थे। भगत सिंह अपने गुरू का बहुत आदर करते थे। जब वे चैथी कक्षा में थे उनके मास्टर जी ने बच्चों से पूछा-

”बच्चों, तुम बड़े होकर क्या करना चाहोगे?“

एक बच्चे ने कहा-

”मैं बड़ा होकर खेती-बाड़ी करूँगा और फिर शादी करूँगा।“ सब हॅंस पड़े। भगत सिंह ने अकड़कर कहा-

”ये सब बड़े काम नहीं हैं। मैं हरगिज शादी नहीं करूँगा। मैं तो अंगे्रजों को देश से निकाल बाहर करूँगा।“ सब भगत सिंह की तेजी देखते रह गए। मास्टर जी ने उन्हें शाबाशी देकर कहा-

”भगत सिंह जरूर अपना वादा पूरा करेगा। पंजाब के जलियाँवाला बाग में एक सभा हो रही थी। अंग्रेजों ने बेकसूर हिंदुस्तानियों पर गोलियाँ बरसा दीं। सैकड़ों देशवासियों की जानें चली गई। उस वक्त भगत सिंह सिर्फ बारह बर्ष के थे। उनके मन में आग धधक उठी। निहत्थों पर गोलियाँ चलाना अन्याय है।“

भगत सिंह जलियाँवाला बाग में अकेले चले गए। चारों ओर सिपाही थे। वे जरा भी नहीं डरे। बाग की मिट्टी एक शीशी में भरकर ले आए। घर में आम आए हुए थे। भगत सिंह को आम बहुत पसंद थे। उनकी बहन ने उन्हें आम खाने को बुलाया। भगत सिंह ने आम खाने से इनकार कर दिया। बहन को अकेले में ले जाकर शीशी में बंद मिट्टी दिखाकर कहा-

”अंग्रेजों ने हमारे सैकड़ों लोग मार दिए। ये खून उन्हीं शहीदों का है। मुझे अंग्रेजों से इस खून का बदला लेना है।“

भगत सिंह कई वर्षो तक उस शीशी को अपने पास रखे रहे और उस पर फूल चढ़ाते रहे।







कॅलेज पहॅुंचने पर गाँधी जी की बातों का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे काॅलेज में भी मित्रों के साथ भारत की आजादी की बातें करते। नेशनल काॅलेज में उन्होंने महाराणा प्रताप, सम्राट चंद्रगुप्त, भारत दुर्दशा जैसे नाटकों में भाग लिया। इन सभी नाटकों में देश-भक्ति की भावना थी।

भगत सिंह की तरह उनके मित्र सुखदेव और राजगुरू भी आजादी के दीवाने थे। तीनों मिलकर गाते-

”मेरा रंग दे बसंती चोला,

माँ रंग दे बसंती चोला।“

भगत सिंह के माता-पिता उनका विवाह कर देना चाहते थे, पर भगत सिंह को तो देश को आज़ाद कराना था। उन्होंने माता-पिता से कह दिया-

”गुलाम देश में र्फ़ि मौत ही मेरी पत्नी हो सकती है। मैं देश को आजादी दिलाए बिना शादी नहीं कर सकता।“

अपने देश को आजाद कराने के लिए भगत सिंह अपने मित्रों के साथ जी जान से जुट गए। उन्हें लगा बम के धमाकों से अंग्रेजों को डराया जा सकता है। अपने एक साथी के साथ उन्होंने असेंबली में बम फेंका और खुद गिरफ्तारी दी।

भगत सिंह और उनके मित्रों के खिलाफ़ मुकदमा चलाया गया। उन पर बम फेंककर अंग्रेजों को मारने का दोष लगाया गया। कोर्ट ने भगत सिंह और उनके मित्र सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सजा सुनाई। सजा सुनकर तीनों मित्र हॅंस पड़े और नारा लगाया, ”वंदे मातरम्! इंकलाब जिंदाबाद“।

भगत सिंह ने अपने माता-पिता को समझाया-

”आपका बेटा देश के लिए शहीद होगा। आप लोग दुख मत कीजिएगा।“

भगत सिंह से कहा गया कि अगर वे वायसरायय से माफी माँग लें तो उनकी फाँसी की सज़ा माफ़ की जा सकती है। भगत सिंह ने माफ़ी माँगना स्वीकार नहीं किया।

भगत सिंह से फाँसी के पहले उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई। उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा-

”मैं चाहता हूँ, मैं फिर भारत में जन्म लॅंू और अपने देश की सेवा करूँ।“

फाँसी लगने के पहले तीनों मित्र एक-दूसरे के गले मिले। मनपसंद रसगुल्ले खाए। मित्रों के साथ भगत सिंह फाँसी के फंदे के पास जा पहॅुंचे। अपने हाथ से गले में फाँसी का फंदा लगाया और हॅंसते-हॅंसते फाँसी चढ़ गए। अंत तक वे नारे लगाते रहे-

”इंकलाब जिंदाबाद।“

धन्य हैं वीर भगत सिंह। उन जैसे शहीदों के त्याग से ही भारत को आज़ादी मिल सकी। मरने के बाद भी वे अमर हैं। हम उन्हें सदैव याद करते रहेंगे।



अंग्रेजों से इस खून का बदला लेंगे।

वे काॅलेज में पहॅुंचे तो वहाँ उन्हें सुखदेव और राजगुरू की मित्रता मिली। तीनों ने असेंबली पर बम फेंकने का निर्णय किया। बम फंेकने पर तीनों गिरफ्तार हुए और अदालत ने उन्हें फाँसी की सजा सुनाई। यह सुनकर वे बिल्कुल नहीं घबराए। तीनों ने ‘वंदे मातरम्। इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाया।

भगत सिंह से कहा गया कि वे अंग्रेजों से माफी माँग लें तो सजा माफ हो सकती है। लेकिन उन्होंने यह नहीं माना।

भगत सिंह ने देश के लिए अपनी जान दे दी। इसीलिए उन्हें शहीद भगत सिंह कहा जाता है।

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